मंज़िल ना भी मिले तो कोई ग़म नही, साथ बीते पल को ज़िंदगी समझते हैं हम | शाद उदयपुरी

Akbar Khan Kavi Sammelan

दूर तक जाने की ख़्वाहिश रखते हैं हम
आपको ही दुनिया समझते हैं हम

साथ जो आप हो मचलते हैं हम
सारी मुश्किलों को आसां, समझते हैं हम

मंज़िल ना भी मिले तो कोई ग़म नही
साथ बीते पल को ज़िंदगी समझते हैं हम

कर लो वादा नाराज़ ना होने का
एक दूजे की धड़कन समझते हैं हम

दिल को रोशन कर देती है मुस्कुराहट आपकी
ऐसा कुछ उधर भी है ये समझते हैं हम

आपका इश्क़ किसी इबादत से कम  नही
ये बात भी अब समझते हैं हम

साँसो पे कोई ज़ोर नही ये समझते हैं हम
याद रखिएगा दुवाओँ में अब चलते हैं हम

- शायर शाद उदयपुरी

Comments